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Monday, January 17, 2011

A Gazhal

Today I read a Gazhal written by my father, Mr. Bhawishya dutt 'bhawishya'. I liked it very much and I am posting it, hope you will also like it.



रोशनी मद्धम हुई अब क्या करें,

साजिशें, सूरज ने की अब क्या करें |



ढील देकर खेंच लेता डोर को,

हर पतंग ऐसे कटी अब क्या करें |



बेपरों की ज़िंदगी, परवाज़ पर,

तब्सरा करने लगी अब क्या करें |



पहले ही तो धूप यां आती नहीं,

बंद होने को गली, अब क्या करें |



नफरते ही नफरते हैं शहर में,

प्यार की सूखी नदी अब क्या करें |



इस कदर खामोश हैं यां लोग की,

चीखने चुप्पी लगी अब क्या करें |



भविष्य दत्त 'भविष्य'
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6 comments:

  1. ''is kadar khamosh hai log ki, cheekhney chuppi lagi''- I like it.

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  2. नफरते ही नफरते हैं इस शहर में,
    प्यार की सूखी नदी अब क्या करें..... very true picture of modern cities

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  3. last two line are really very nice

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