Today I read a Gazhal written by my father, Mr. Bhawishya dutt 'bhawishya'. I liked it very much and I am posting it, hope you will also like it.
रोशनी मद्धम हुई अब क्या करें,
साजिशें, सूरज ने की अब क्या करें |
ढील देकर खेंच लेता डोर को,
हर पतंग ऐसे कटी अब क्या करें |
बेपरों की ज़िंदगी, परवाज़ पर,
तब्सरा करने लगी अब क्या करें |
पहले ही तो धूप यां आती नहीं,
बंद होने को गली, अब क्या करें |
नफरते ही नफरते हैं शहर में,
प्यार की सूखी नदी अब क्या करें |
इस कदर खामोश हैं यां लोग की,
चीखने चुप्पी लगी अब क्या करें |
भविष्य दत्त 'भविष्य'
रोशनी मद्धम हुई अब क्या करें,
साजिशें, सूरज ने की अब क्या करें |
ढील देकर खेंच लेता डोर को,
हर पतंग ऐसे कटी अब क्या करें |
बेपरों की ज़िंदगी, परवाज़ पर,
तब्सरा करने लगी अब क्या करें |
पहले ही तो धूप यां आती नहीं,
बंद होने को गली, अब क्या करें |
नफरते ही नफरते हैं शहर में,
प्यार की सूखी नदी अब क्या करें |
इस कदर खामोश हैं यां लोग की,
चीखने चुप्पी लगी अब क्या करें |
भविष्य दत्त 'भविष्य'
''is kadar khamosh hai log ki, cheekhney chuppi lagi''- I like it.
ReplyDeleteReally It is nice sher...
ReplyDeleteनफरते ही नफरते हैं इस शहर में,
ReplyDeleteप्यार की सूखी नदी अब क्या करें..... very true picture of modern cities
hmm...
ReplyDeletelast two line are really very nice
ReplyDeleteThnxx...
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